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दीप बालेंगे

   



 

अबकी दीवाली
इस तरह हम सँभालेंगे
जहाँ भी अन्धेरा है
वहाँ दीप बालेंगे।

दीवाली सबकी
उजियारा है सबका
रहे फिर अँधेरों में
क्यों कोई तबका

मौसम को अबकी हम
धुलेंगे, खँगालेंगे।

जाँगर को मान मिले
मेहनत को आदर
सबके ही खेतों में
सुख खेले झाबर

बोयेंगे दिया, नया
सूर्य हम उगा लेंगे

तम का हर कण गाये
ज्योति का तराना
साँसों की सरगम का
कौन सा घराना?

छन्द रोशनी के
सब लोग गुनगुना लेंगे।

रविशंकर मिश्र “रवि” 
१ नवंबर २०१५

   

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