अँधियारा ना छोड़े पीछा
कैसे इसे भगाऊँ?
सोच रही हूँ दीवाली पर
कैसे दिया जलाऊँ?
देख-देखकर खाली बोतल
मेरा जी जलता है!
जी जल-जलकर बुझता ऐसे
जैसे दिन ढलता है!
शाम तलक लेकर आएगा
भरी हुई बोतल!
उसकी बोतल देख-देखकर
कब तक मैं मुरझाऊँ?
बनिया रोज़ टोक देता है
करो उधारी चुकता!
नज़र मिला पाती ना उससे
मेरा सर भी झुकता!
ख़ुद तो खा-पीकर आएगा
हमको दे ठोकर!
उसकी ठोकर आज ठोंककर
क्या मैं भी मुस्काऊँ?
- रावेंद्रकुमार रवि
१ नवंबर २०१५ |