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जलाओ दीप

   



 

जलाओ दीप तुम
हम रोशनी के गीत गायेंगे
लड़ेंगे मिल अँधेरों से उजाले जीत जायेंगे!

तुम्हारे बिन
हमारा इस नगर में जी नहीं लगता
कोई आवारगी का पल सुनो हमको नहीं ठगता
तुम्हारे साथ होने से अजब सी तृप्ति मिलती है
ये सच है मौन में भी एक सिहरन सी मचलती है
तुम्हारे साथ चल कर दूर तक
ए मीत जायेंगे!

कसम से
एक पल हमको अँधेरा कब सुहाता है
न हो तुम साथ तो फिर रतजगा कितना सताता है
करूँ मन की चिरौरी बेसबब आँसू बहाता है
कभी यह रूठ जाता है तो झट फिर मान जाता है
मिले जो चार दिन जीवन के हँसते
बीत जायेंगे!

ग़मों की रात
जाएगी अँधेरा सकपकायेगा
विवश हो भोर का तारा भरे मन छटपटायेगा
उगेगा सूर्य सीना तान जग को जगमगायेगा
घरौंदे में सजग नवजात पंछी फ़ड़फ़ड़ायेगा
निराशा के भरे सागर रिसेंगे
रीत जायेंगे!

- डॉ रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१ नवंबर २०१५

   

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