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अँधियारे अवकाश पर गये
लो, दीवाली आयी।
महँगाई के मारे दीपक
पड़े हुए हैं सूने
धन्ना सेठों की पौ बारह
दाम हो गये दूने
साहब के घर हँसे मिठाई
मेवों की जायी।
चाइनीज झालर यों चमकी
बुझी कुम्हार की अक्किल
पकवानों की छोड़ो, उसको
रोटी की भी है मुश्किल
कनफोड़ू बम और पटाखों-
ने अन्धेर मचायी।
भ्रष्ट आचरण अपनाने की
मची हुई है हड़बड़
विघ्न खोजकर हारे गणपति
मिली न कुछ भी गड़बड़
हम तो पूजा-पाठ में रहे
लक्ष्मी हुई परायी।
- राजेन्द्र वर्मा
१ नवंबर २०१५ |