अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीवाली आयी

   



 

अँधियारे अवकाश पर गये
लो, दीवाली आयी।

महँगाई के मारे दीपक
पड़े हुए हैं सूने
धन्ना सेठों की पौ बारह
दाम हो गये दूने

साहब के घर हँसे मिठाई
मेवों की जायी।

चाइनीज झालर यों चमकी
बुझी कुम्हार की अक्किल
पकवानों की छोड़ो, उसको
रोटी की भी है मुश्किल

कनफोड़ू बम और पटाखों-
ने अन्धेर मचायी।

भ्रष्ट आचरण अपनाने की
मची हुई है हड़बड़
विघ्न खोजकर हारे गणपति
मिली न कुछ भी गड़बड़

हम तो पूजा-पाठ में रहे
लक्ष्मी हुई परायी।

- राजेन्द्र वर्मा 
१ नवंबर २०१५

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter