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चल
रे! मन इस दीपोत्सव पर
कर्म तनिक ऐसे कर लेवें
बाँट चलें कुछ नन्हीं खुशियाँ
औ' मुस्कानों को पर देवें
जिनको, रोटी मिष्ठानों सी
लगे दाल भी पकवानों सी
चूल्हा जलना उत्सव जैसा
फिक्र नहीं पर धनवानों सी
ऐसे गौण कुबेरों से हम
सीख सिखाते कुछ क्षण लेवें
दीन-दुखी की पीर मिटाएँ
मुरझाये उपवन महकाएँ
सपनों की ज्वाला को लेकर
आशाओं के दीप जलाएँ
'रीत' डोलते कुछ कदमों को
हिम्मत देवें संबल देंवे।
- परमजीत कौर 'रीत'
१ नवंबर २०१५ |