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माटी के भगवान बनाता
साँझ सबेरे रामधनी
दूर ताल से माटी लाता
साँझ सबेरे रामधनी।
कंकड वाले तालाबों से
काली मिट्टी लानी होती
पैदल ही चलती जयदेबी
मिट्टी जब भरवानी होती
और गधे पर चढ़कर चलता
पीछे पीछे रामधनी।
काली चिकनी मूरत जैसी
जयदेबी गुमसुम रहती
माँ, बेटी, पत्नी, भौजी के
अनगिन रूप भरे रहती
टुकुर टुकुर देखा करता है
जयदेबी को रामधनी।
माटी रात भिगोई जाती
कंकड सभी निकाले जाते
माटी पर चलती जयदेबी
गीत प्रेम का गाते गाते
फिर कबीर सा लिए लुकाठी
चाक घुमाता रामधनी।
ग्वालिन बनती-राजा बनता
चीता हिरन सिपाही बनता
भाँति-भाँति के साँचे होते
भाँति-भाँति का जीवन ढलता।
लेकिन बहुत मगन होता
जब दिया बनाता रामधनी।
- भारतेन्दु मिश्र
१ नवंबर २०१५ |