गया
दशहरा रावण के घर
जली दिवाली मुदित विभीषण
कौन देश में विधवाओं का
मान कर रहा रुधिर सना रण ?
दीये तो
जलते रहते हैं
समय तेल भरता रहता है
अंधकार के बीच प्रभा का
खेल निरा चलता रहता है
सत्य यहाँ पर मुँदी आँख में
खुली आँख में झूठ विलक्षण
बारूदों की बम
बम देखो
देख-पटाखा ऊपर तक
चीखों में कुछ गोश्त समेटे
फुलझड़ियों से भू पर तक
दुश्मन भेज रहा है कम्पट
बदल गया व्यापार व्याकरण
जगमग जगमग
चकाचौंध है
अपनी बछिया काली है
किसके किसके साथ चल रही
गोरी चमड़ी वाली है ?
लीप पोत कर बचा रहे हैं
दीवारों को लगा आ क्षरण
- अशोक शर्मा
१ नवंबर २०१५ |