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दीप
जल गया
मन की लंका ध्वस्त
दसों दिशाएँ प्रकाशमान
दशमुख द्वार बंद
केंद्र हुआ प्रतीत, हुआ विस्तार
नाभि से ब्रह्म स्रोत झरा
रावण भयभीत
रोम-रोम झंकृत पुलकित
अंग-अंग तेजोमय
मिटा तमस
मिट गई आशाएँ तृष्णा अहं क्रोध
दुःख-सुख के झंझावातों से
मुक्त दिशाएँ
कहाँ अँधेरा? ढूँढ़ रहा मन
जागृत होकर
दीप-दीप जल गया जगत
दिवाली बनकर
शान्त चित्त में दीपक
जलता रहा निरन्तर
मन हारा सुख शांति
बरसने लगी
अधर पर
- उमेश मौर्य
१ नवंबर २०१५ |