थिरक रही हैं ज्योति शिखायें
जगमग जगमग !
मुंडेरों पर उचक उचक
हिल मिल कर गली में
झाँक रहे हैं नन्हें नन्हें दीये!
बताशों की मीठी खुशबू में
डूबा है घर आँगन
भीतर से बाहर तक
नई नवेली भाभी की तरह
सजी हैं अल्पनाएँ !
भैया ने भाभी के दोनों हाथों में
थमा दी हैं फुलझड़ियाँ!
उनकी आँखों में
जगमगा उठी हैं ज्योति शिखाएँ
कार्तिक की हवाओं का मन
डूब गया है सम्मोहन में !
माँ रख रही हैं दीये
जगमगा गया है घर का हर कोना
खिल उठा है अल्पनाओं का मन
माँ की तरह
गुनगुना रहीं हैं माँ हमेशा की तरह
सम्मोहन में डूबी ज्योति शिखायें
थिरक रही हैं अनवरत !
गर्वित पिता की तरह
आकाश को बाँहों में भरने के लिए
उत्सुक है कंदील !
थिरक रही हैं ज्योति शिखाएँ
जगमग जगमग!
- सविता मिश्रा
१ नवंबर २०१५ |