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धर्म-कर्म यज्ञादि या, पूजन-पाठ विधान
दीप लगाकर ही मनुज, चढ़े नए सोपान
धूप, दीप, नैवेद्य औ’, पूजन-अर्चन मान्य
मगर मान्यता भाव की, भावों का प्राधान्य
राष्ट्र-धर्म की राह में, जो जन आए काम
अमर दीप हैं देश के, जन-जन करे सलाम
चलो दिवाली आ गई, पूछ-परख आरम्भ
वैवाहिक अवसर बने, लगे माँगलिक खम्भ
पीले चावल द्वार पर, रखे दिवाली माह
ढोल-ढमाके घोड़ियाँ, चालू हुए विवाह
दीप धरे दीवार पर, भरे सुनयना साँस
पिया बसे परदेस में, चुभी हृदय में फाँस
दीप प्रवाहित कर रही, गोरी नदिया तीर
मन में लेकर कामना, बदलेगी तकदीर
पूजन कर गोरी उठी, ले दीपों का थाल
जगमग-जगमग रोशनी, खुशियाँ हुईं निहाल
दो भागों में बाँटती, आँगन की दीवार
माँ ने दीपक धर दिया, बँटा नहीं फिर प्यार
बूढी माँ दीपक धरे, तुलसी चौरे पास
संभव है ये रोशनी, अंतस करे उजास
- प्रभु त्रिवेदी
१ नवंबर २०१५ |