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दीपोत्सव अब आ रहा, सजे हाट बाज़ार
रंग बिरंगी है छटा, ख़ुशियों का आगार
आयातित माला दिए, मोहक बंदनवार
बहुत अचंभित मन हुआ, दुविधा बढ़ी अपार
वस्तु विदेशी मन हरे, मन ये करे विचार
रच कुम्हार दीपक दिए, नेह सिक्त संचार
माली तेली और भी, सभी करें सहयोग
खुशियाँ मिलकर जब बँटें, बने नेह संयोग
बिना भेद के दीप का, चारों ओर उजास
हरे अँधेरा दुख छँटे, रहे न कोउ उदास
साफ-सफाई घर सजे, लहकें बंदनवार
रंगोली मन मोह ले, हर आँगन-घर द्वार
विविध-स्वाद व्यंजन भरे, मिष्ठान्नों के थाल
धन-लक्ष्मी पूजित हुईं, कुमकुम अक्षत भाल
- ज्योतिर्मयी पन्त
१ नवंबर २०१५ |