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दीप-मालाओ!
तुम्हारी रोशनी की ही विजय हो
छा गया है जगत में तम
सघन होकर
जी रहे हैं मनुज
जीवन-अर्थ खोकर
कालिमा का
फैलता अस्तित्व क्षय हो
रात के काले अँधेरे
छल लिए
बस तुम्हीं
घिरती अमा का हल लिये
जिंदगी हर पल
सरस, सुखमय, अभय हो
दिनकरों सम
दर्प-खण्डित रात कर दो
असत-रिपु को
किरण-पुंजो!
मात कर दो
फिर उषा का
आगमन उल्लासमय हो
दीप - मालाओ!
तुम्हारी रोशनी की ही विजय हो।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
२० अक्तूबर २०१४ |