आज
अमावस हुई हठीली
ओढ़ी चुनरी गहरी नीली
अँधियारों से लड़ने का
कलश ज्योत के भरने का
किया धरा ने नव आह्वान
निशितारों ने छोड़ा साथ
थामा ना जुगनू ने हाथ
घूँघट ओढ़े खड़ी चाँदनी
चंदा की मानी ना बात
दीप-माल से सजने का
दुःख पीड़ा को तजने का
किया रात ने नव आह्वान
सजे चौबारे द्वार गली
कंदीलों की रेख जली
डोले महके रजनी गंधा
खुशबू भीगी कली-कली
रंग रँगोली रँगने का
नेह प्यार से बँधने का
किया सृष्टि ने नव आह्वान
- शशि पाधा
२० अक्तूबर २०१४ |