अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

किया धरा ने नव आह्वान

   



 

आज अमावस हुई हठीली
ओढ़ी चुनरी गहरी नीली
अँधियारों से लड़ने का
कलश ज्योत के भरने का
किया धरा ने नव आह्वान

निशितारों ने छोड़ा साथ
थामा ना जुगनू ने हाथ
घूँघट ओढ़े खड़ी चाँदनी
चंदा की मानी ना बात
दीप-माल से सजने का
दुःख पीड़ा को तजने का
किया रात ने नव आह्वान

सजे चौबारे द्वार गली
कंदीलों की रेख जली
डोले महके रजनी गंधा
खुशबू भीगी कली-कली
रंग रँगोली रँगने का
नेह प्यार से बँधने का
किया सृष्टि ने नव आह्वान

- शशि पाधा
२० अक्तूबर २०१४

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter