घर घर ज्योति की खुशी बोए
ऐसी कोई दिवाली हो
दिल के अनगिन कुह्लिए में
कुछ उपकारों के दीप जले
बाँट सके दुःख दर्द वही
अबसे दुनिया में रीत चले
ग़म के तम वापस आ न सके
रतिया वह एक निराली हो
जगमग हो माटी के कन कन
चाहत की फुलकारी से
दहशत के दुर्गंध मिटे अब
दुनिया की फुलवारी से
द्वेष दमन का रोग न व्यापे
पग पग पर खुशहाली हो
उजियारों की महफिल में
कम से कम इतना नेम रहे
और वहाँ कुछ हो ना हो
बस मानवता की टेम रहे
अब ना उसकी ओर तनी
बंदूक कोई दुनाली हो
हो मुस्काने मनुहार भरीं
चेहरे पे चटख उल्लास रहे
पलकों पर नेह का सावन हो
अधरों में घुला मधुमास रहे
अनधन कुछ पास रहे ना रहे
भावों में नहीं कंगाली हो
राम रहिम हर धड़कन हो
नानक सांसो में वास करे
प्रेम सनेसा ईसा का फिर
घटघट में उजास करे
दंभ के बम बारूद मिटे
सुखचैन की फिर बहाली हो
- शंभु शरण मंडल
२० अक्तूबर २०१४ |