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लछमी मैया!
पैर तुम्हारे पूज न पाऊँ
तुम कुबेर की कोठी का जब नूर हो गयीं
मजदूरों की कुटिया से तब दूर हो गयीं
हारा कोशिश कर पल भर
दीदार न पाऊँ
लाई-बताशा मुठ्ठी भर ले भोग लगाया
मृण्मय दीपक तम हरने टिम-टिम जल पाया
नहीं जानता पूजन, भजन
किस तरह गाऊँ?
सोना-चाँदी हीरे-मोती तुम्हें सुहाते
फल-मेवा मिष्ठान्न-पटाखे खूब लुभाते
माल विदेशी घाटा देशी
विवश चुकाऊँ
तेज रौशनी चुँधियाती आँखें क्या देखें?
न्यून उजाला धुँधलाती आँखें ना लेखें
महलों की परछाईं से भी
कुटी बचाऊँ
कैद विदेशी बैंकों में कर नेता बैठे
दबा तिजोरी में व्यवसायी खूबई ऐंठे
पलक पाँवड़े बिछा
राह हेरूँ पछताऊँ
कवि मजदूर न फूटी आँखों तुम्हें सुहाते
श्रद्धा सहित तुम्हें मस्तक हर बरस नवाते
गृह लक्ष्मी नन्हें-मुन्नों को
क्या समझाऊँ?
- संजीव सलिल
२० अक्तूबर २०१४ |