जलता दीपक द्वारे द्वारे
राम सिया अरु लखन पधारे
अवधपुरी में मनी दिवाली
उजली हुई अमावस काली
रघुवर जी को राह दिखाती
झूम रही थी लौ मतवाली
बने घरौंदे प्यारे प्यारे
सजे खिलौने न्यारे न्यारे
नीली हरी लाल रंगोली
घर की चौखट भी खुश हो ली
कुलिया चुकिया लावा फरही
ले हाथों में मुनिया डोली
अम्बर जैसे चाँद सितारे
आज धरा पर निखरे सारे
दीप-पंक्तियाँ झूम रही हैं
आँगन चकरी घूम रही है
जगमग जगमग कंदीलों पर
लौ को कीटें चूम रही हैं
पावन निर्मल पर्व हमारे
ध्रुवतारा भी हमें निहारे
मन के भीतर हो उजियारा
जीवन पथ पर तम भी हारा
ज्ञान ध्यान की लगन लगी है
कहाँ टिकेगा फिर अँधियारा
लछमी पूजन साँझ सकारे
संध्या दीपक सुबह सँवारे
- ऋता शेखर 'मधु'
२० अक्तूबर २०१४ |