|
शब्द शब्द सौ बार लिखे हैं, प्राणों के मनुहार
लिखे हैं
बाती -बाती रोज़ जलाकर, जीवन के व्यापार लिखे हैं
आज जले एक ऐसी बाती, रोशन हो जाए जग सारा
तू भी समझे, मैं भी जानूँ, जीवन है आशा का क्यारा
छाए न बदली आशा पर, सूरज सी दमकें आशाएँ
और रात्रि में चमके चंदा, कोई भी न नीर बहाए
दीपक की लड़ियों से पूछो, उसने कितनी बार लिखे हैं
बाती -बाती रोज़ जलाकर, जीवन के व्यापार लिखे हैं
शानोशौकत के पहरे हैं, गहरे हैं कितने अँधियारे
सूरज करता रोशन सबको, अँधियारा फिर भी पसरा रे
कहीं पटाखों की लड़ियाँ हैं, कहीं अँधेरे में
दीवाली
पलकों में सिमटे हैं सपने और ह्रदय है उनका खाली
आओ सब मिल हाथ बढ़ाएँ, वो भी झूमें, नाचें, गाएँ
नयनों की कोरों से झाँकें उनके भी सपने, आशाएँ
उनके नन्हे से सपनों में जीवन के दो-चार लिखे हैं
हाथ बढ़ाकर थामें उनको, जिनके मन अँधियार लिखे हैं
- प्रणव भारती
२० अक्तूबर २०१४ |