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दूर
गाँव में
बैठा है वो
इस दीवाली आस लगाये
कोई आकर दिया जलाये
लाखौरी ईंटों
वाला घर
खड़ा अँधेरे में रोता है
सुधियों का
मृगछौना बैठा
आँगन में, धीरज खोता है
खाली खाली
मुंडेरों पर
घिर आये यादों के साये
कोई आकर दिया जलाये
जुम्मन काका
के झउये में
बस मिट्टी के दिये नहीं थे
मन के अन्धकार
से लड़ते
देवदूत अब रहे नहीं थे
जाले लगे हुए
आलों को
बात बात रोना आ जाये
कोई आकर दिया जलाये
- डॉ. प्रदीप शुक्ल
२० अक्तूबर २०१४ |