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दीवाली है
नए-नए सामानों के माडल
नए-नए माडल डिजायनर हैं भगवानों के
विज्ञापन हैं--छप्पन भोगों के, पकवानों के
उभर रहे हैं नए द्वीप दुश्चिंता के हर पल
लगे हिंडोले ऊँचा नभ छूते अरमानों के
दीवाली है
राग-रंग की सुविधा के होटल
बाजारों की धूल चाटता गात खिलाड़ी का
पर्व नहीं दुर्बल-भोले-मासूम-अनाड़ी का
जो पीछे हो, उसके
हिस्से धुँआ और बदबू
दीवाली चक्का है चमचम मोटरगाड़ी का
दीवाली है
नई-नई दुविधाओं के दंगल
दीवाली मारण-मोहन-उच्चाटन-वशीकरण
जीवन के यह बीजगणित का अद्भुत समीकरण
योद्धा बनकर जिसने जीता ये प्रतियोगी रण
उसकी बंदनवार दिवाली, उसका ही तोरण
दीवाली यह
यक्ष-प्रश्न है, ढूँढ रहा हूँ हल
सूरज छिप जाए जब, चंदा दे इनकारी कर
थक जाता है दीपक तम की ताबेदारी कर
साख बेचकर क्रैडिट-कार्डों वाले मौसम में
वैभव के हर उपादान की मुक्त उधारी कर
दीवाली है
लक्ष्मी के मद की छमछम पायल
दीवाली के माने गहना, महँगी हाथघड़ी
दीवाली है महँगी पनही औ' सस्ती पगड़ी
जिसकी जगर-मगर इतनी हो, कुछ भी दिखे नहीं
दीवाली है उस बिजली की दिपदिप एक लड़ी
दीवाली के
गर्म तेल में क्यों न स्वार्थ निज तल
उत्सव के क्षण में दीवाली है 'यम का दीपक'
शोर पटाखों का इतना है, कान गए हैं पक
कभी हुआ करती थी खील-बताशों जैसी जो
दीवाली का खेल-तमाशा देख गए हैं थक
दीवाली के
महारास में है तन-मन घायल
- पंकज परिमल
२० अक्तूबर २०१४ |