सुदूर मेरे देश में
आज दीपावली के दीये
जल रहे होंगे...
टिमटिमाती होंगी
सारी बस्तियां
छोटे छोटे झोपड़े भी
दीयों की कतारों से
अपनी सत्ता में
जीवंत हो उठे होंगे।
शायद किसी के राम
किसी के लक्ष्मण
और किसी की
सीता भी लौट आई हो
अपने लम्बे प्रवासों
के बाद।
घर के भीतर
और बाहर
फुलझड़ियाँ और
पटाखों से खिल
रहे होंगे चेहरे -
मेरी मानस आँखों में
बच्चों की टोलियां
आकाश में उठी हुयी
लम्बीं हवाईयों पर
खिलखिला रही होंगी -
माँ घर का आँगन
लीप - पोत कर
सज -सवंर कर
देहरी पर दीपों की कतार
सजा कर
लक्ष्मी पूजा पर बैठी होगी।
क्या उस की
आँखों में
एक बादल घिरा होगा !
क्या बंद आँखों से
कोई आंसू
टपका होगा ?
क्यों कि मेरे इस
देश को तो
मालूम ही नही
राम क्या होता है
और दीपावली क्या !
यहाँ तो ऐश्वर्य का
रावण ही पूजा जाता है
अशोक वाटिका में
उस के अट्ठहास
गूंजते है
दीयो की पंगत्तियों की
बात कौन करे
आपस में जुडी हुई
कतारों की
बात ही बेमानी है।
सुदर्शन प्रियदर्शिनी
२० अक्तूबर २०१४ |