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दीवाली को समझो पहले

   



 

दीवाली को समझो पहले, जानो इसका अर्थ
रहा कहीं भी तम तो होगा, पर्व मनाना व्यर्थ
घर को साफ-सुघड़ रखने में, सभी दीखते दक्ष
मन का घर भी सुथरा करके, रखो हृदय को स्वच्छ

एक ज्ञान का दीप जलाओ, जगत करो उजियार
एक दीप हो ऐसा जिसकी, लौ में झलके प्यार
एक दीप हो नेह-राग का, ऐसा जले विशेष
जिसे देख कर ही जल जायें, ईर्ष्या, नफरत, द्वेष

एक दीप ऐसा भी हो जो, करे झूठ का दाह
एक दीप जो सदा सत्य की, दिखलाता हो राह
एक दीप प्रज्वलित कर दो जो, ऐसा करे प्रकाश
मानव में दानवता रूपी, तम का कर दे नाश

एक दीप ऐसा बालो जो, करे क्रूरता दूर
ऐसा भरे प्रकाश दया का, बने मनुज भी सूर
एक दीप कर डाले जो, हिंसा का अंत समूल
एक दीप ऐसा जो कर दे, प्रस्तर-उर को फूल

एक दीप ऐसा बालो जो, करे कुरीति विनष्ट
जुआ खेलने वाली गन्दी, आदत कर दे नष्ट
एक दीप भाई-चारे के, आओ कर दें नाम
मिट जाएगी परम-शत्रुता, कटुता की हर शाम

अपने हैं सब पास-पड़ोसी, 'सौरभ' कर आभास
मिल-जुलकर आ दीप जलाएँ, करें हास-परिहास
एक-एक की अवली में हम, रख दें दीप अनेक
ज्यों प्रकाश मिल एकरूप हो, हम हो जायें एक

- सुरेश कुमार 'सौरभ'
२० अक्तूबर २०१४

   

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