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वापस लौटे राम श्री, खत्म हुआ सन्यास
दीप दीप्त हर घर हुए, गया तिमिर बनवास
दीप मालिकाएँ सजीं, फैलायें उजियार
पीठ बिठाए तिमिर को, किरणें छोड़ें पार
दीप दीप से कर रहा, हँस हँस कर के बात
हम तुम साथ प्रदीप्त तो, तम की क्या औकात
इस प्रकाश के पर्व में, चाँद गया छुप रूठ
ली उधार थी चाँदनी, बात नहीं यह झूठ
माटी का दीपक जला, कुटिया में चुपचाप
प्रसरित होती किरण से, लेता तम का माप
सिकुड रहे दिन ठंड से, फैल रही पर रात
करामात है दीप की, करे तिमिर पर घात
लक्ष्मी पूजन के लिए, सजा लिया घर द्वार
मन श्रद्धा दीपक जलें, भाव करें शृंगार
रोशन कर घर द्वार को, माँगें माँ से कोष
मन-तम दूर करें प्रथम, अंतस हो निर्दोष
लक्ष्मी के सत्कार को, दिया आँगना लीप
निर्भय हो जलता रहा, दीन कुटी पर दीप
तिल तिल कर बाती जले, सेवा भाव अपार
निज प्राणों की बलि चढ़ा, दूर करे अँधियार
- ओम प्रकाश नौटियाल
२० अक्तूबर २०१४ |