अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

आई दीपावली

   



 

ख़ुशी, एकता, प्यार का, दीवाली है पर्व।
अपने इस त्यौहार पर, हमें बहुत है गर्व।।

आई है दीपावली, लेकर जगमग रात।
तारों को देने लगी, आतिशबाज़ी मात।।

फुलझड़ियों के बीच में, जलता हुआ अनार।
तनमन जगमग कर रही, चमकीली बौछार।।

धरती की आकाश से, लगी हुई है होड़।
देखो मेरे पास भी, तारे हैं बेजोड़।।

आतिशबाज़ी दीप से, मिला रही है हाथ।
पूनम जैसी हो गई, धवल, अमावस रात।।

घर आँगन तन-मन सभी, चमक रहे हैं आज।
दीवाली को जानिये, त्यौहारों का ताज।।

कोई श्रद्धा पुश्प दे, कोई छप्पन भोग।
स्वागत तेरा लक्ष्मी, करते हैं सब लोग।।

साफ़-सफ़ाई रौशनी, ढेरों हैं पकवान।
दीपमाल का हार है, दीवाली की शान।।

मुफ़लिस की हो झोपड़ी, या राजा का द्वार।
अपनी छटा बिखेरता, दीपों का त्यौहार।।

दीवाली पर कामना, करता हूँ हर साल।
सुख सम्पति सबको मिले, सभी रहें खुशहाल।।

- अनिल जैन
२० अक्तूबर २०१४

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter