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आज
फिर होगा सबेरा मैं दिया हूँ
निगल जाऊँगा अँधेरा मैं दिया हूँ
जामिनी से जंग मैं जीता हमेशा
रोशनाई का चितेरा मैं दिया हूँ
सामने दीवार पर कालिख पुती है
नाम ये किसने उकेरा मैं दिया हूँ
सूर्य थककर बैठता है शाम को जब
ठेलता हूँ मैं अँधेरा, मैं दिया हूँ
घन तिमिर में सत्य जब जब दब गया था
झूठ को मैंने निबेरा, मैं दिया हूँ
है अगर तूफ़ान कोई तो बुझा दे
बाहुओं को अब तरेरा मैं दिया हूँ
तुम जला देना मुझे निश्चिंत होकर
छा रहा हो तम घनेरा मैं दिया हूँ
देखकर लौ टिमटिमाती डर गया गर
शौक है मेरा नचेरा मैं दिया हूँ
चल 'पवन' खामोश होकर रास्तों में
ढूँढते हैं वो सपेरा मैं दिया हूँ
- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
२० अक्तूबर २०१४ |