अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ज्योति दीपक

   



 

ज्योति, दीपक, सौख्य का उपहार दीवाली
बाँध लाई गाँठ में फिर प्यार दीवाली

आस के आखर उभर आए हवाओं में
कर रही धन-देवी का सत्कार दीवाली

बाँध वंदनवार देहरी अल्पना रचकर
शोभती हर द्वार पर शुभकार दीवाली

पीर हर, घर-घर सजाती धीर-बाती संग
कोने-कोने इक दिया क्रमवार दीवाली

जीतकर मावस पटाखे छोड़ हर्षित हो
सत्य की करती तुमुल जयकार दीवाली

देह से कितनी हों लंबी दूरियाँ चाहे
जोड़ देती नेह के हिय तार दीवाली

मेट मन से मैल, मंगल भाव के भूषण
सौंपती है विश्व को, हर बार दीवाली

पूज लक्ष्मी मातु को मंगल सुरों के संग
जग मनाता‘कल्पना’खुशवार दीवाली

- कल्पना रामानी
२० अक्तूबर २०१४

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter