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अब
अँधेरी रात वाली, ना रही अपनी दिवाली
फिर सुहानी रात लेकर, आ रही अपनी दिवाली
जो अँधेरे आ बसे थे, नेह उर की वादियों में
कालिमा सारे समेटे, जा रही अपनी दिवाली
फिर पटाके, फिर मिठाई, फिर बचपने का लौट आना
देखिये प्रमुदित हुए सब, भा रही अपनी दिवाली
दीप दें उन बस्तियों को, रोशनी रूठी है जिनसे
वो कहें तम से समर को, आ रही अपनी दिवाली
जम रही थी मैल दिल पर, दूरियाँ भी बढ़ रहीं थीं
स्नेह की सरगम बजाती, गा रही अपनी दिवाली
- अनिल कुमार मिश्र
२० अक्तूबर २०१४ |