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दिवाली के दिन

   



 


तीन सौ चौसंठ दिनों से
ठीक विपरीत इस दिन
काम, क्रौध, लोभ, मोह के फेर को छोड़ कर
सिर्फ और सिर्फ
अँधेरे से ही लड़ना है
पिछली रात यही सोचा था

और आज दोनों हाथों पर
कल रात लगाई हुई सूखी मेहँदी को खुरच कर
सुबह-सवेरे से ही छोटे-बड़े
कामो में जुट जाना अच्छा बहाना मिला
दिवाली जो है आज

मिठाईयां तश्तरियों में सज़ानी है
फिर कई कपास की छोटी-छोटी बत्तियाँ बना
दिन भर तेल में डूबो पर रखनी है
कोरे दीयों को पानी से निकाल
कर सुखाना है

अरे
खील-बताशों का शगुन भी तो जरूरी है
भाग कर लाओ
रोली और मौली भी
पंचामृत हैं न बराबर घर में
घी, शहद, दही, दूध, गंगाजल

लक्ष्मी का वह चित्र निकाल कर साफ कर
पूजा-घर में सज़ा दो
जिसमे लक्ष्मी के बगल में
भगवान विष्णु विराजे हैं

आश्विन-कर्तिका के
क्रष्ण पक्ष वाले घोर अँधियारे में लिपटे दिनों में
क्षिरा सागर के समुंदर मंथन से निकली देवी महालक्ष्मी
को पूजने का यह न्यारा दिन

धन तेरस, नरक चतुर्देर्शी, लक्ष्मी पूजा, बाली प्रतिपडा, भैयादूज
इस माह का हर दिन अनोखा
हर दिन पवित्र

दीपावली आते-जाते हुये हम
कलयुग के प्राणियों को
यह समझा देती है कि
बिना बनवास के मुहाने पर
कई दीप एक साथ
जलने का जोखिम कभी नहीं पाल सकते

नरक चौदशी और
धन-तेरस के भारी भरकम दिन के बाद
ऊंट से लंबे दिन की
पीठ पर रोशनाई सवार हो कर आती है
दीपावली

इन दिनों किसान अपनी खुरपी, जेलियो को
भरपूर आराम करने देते हैं तभी
खेतों की ज़मीनों को भी अपनी खोयी ऊर्जा को
समेटने का प्रयाप्त अवसर मिल जाता है

दीपावली के दिन ही
लक्ष्मी, विष्णु, गजेंद्र कुबेर और इंद्रा ब्रमाण्ड में घूमने निकलेगे
और हम धरावासी अपने मन के अँधेरों को पकड़ कर
सुतली बमों की पूंछ पर बांध कर फोड़ेंगे
फिर पास खड़े नन्हें बच्चों की खिलखिलाती मुस्कुराहटो में
गहरे तक डूब जाएँगे 

- विपिन चौधरी
२८ अक्तूबर २०१३

   

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