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दीप हँसकर, रात भर जलता रहा
था अकेला, फिर भी तम हरता रहा
थी अमा की रात तो भी क्या हुआ
घर उजालों से, सदा भरता रहा
है खुशी कि, रौशनी सबको मिली
खुद अँधेरों से, सदा लड़ता रहा
मिटना तो संसार का दस्तूर है
तम मिटाने के लिए, मिटता रहा
मैं जला के खुद को, जग रोशन करूँ
मिट रहा मैं, जल रहा, हँसता रहा
- उमेश मौर्य
२८ अक्तूबर २०१३ |