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आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश ।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश ।।
सुख देता परिवेश, प्रगति के पथ खुल जाते ।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते ।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती ।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती ।।
दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज ।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज ।।
यही माँग है आज, जगत में हो उजियारा ।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएँ भाईचारा ।
'ठकुरेला' कविराय, भले हो नृप या चाकर ।
चलें सभी मिल साथ, प्रेम के दीप जलाकर ।।
जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम ।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम ।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती ।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती ।
'ठकुरेला' कविराय, पलट जाता है पासा ।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा ।।
दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात ।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात ।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते ।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते ।
'ठकुरेला' कविराय, बजी खुशियों की ताली ।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली ।।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
२८ अक्तूबर २०१३ |