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आने वाली है दीवाली
सुगना बैठा सोचे
रक्त चूस लेता सारा श्रम
नमक- मिर्च, रोटी के लाले
बच्चों की भोली माँगों के
अभी झेलने होंगे भाले
नई व्यवस्था के सारे ही
दावे निकले पोचे
ख्वाब अमीरी के दिखलाए
मसनद पर बैठा है चिल्ली
जितने कदम बढा़एँ, दूनी
दूर हुई जाती है दिल्ली
क्या न करे? क्या करे? खौलता
कैसे, किसे दबोचे?
सारा लावा बह निकलेगा
मूल्यवान ये, ठंडा होकर
जब दो नन्हें हाथ आँगने
दीप दमकते, जाएँगे धर
कह देगी मुस्कान कि जितने
आने, आएँ लोचे
- शशिकांत गीते
२८ अक्तूबर २०१३ |