अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीवाली शुभ योग

   



 

धर्म कर्म पुरुषार्थ का, दीवाली शुभ योग ।
जीवन के उत्कर्ष का, अनुपम नव संयोग ।

पाकर ठाट कुबेर का, मत इतराओ यार।
सीख हमें सिखला रहा, दीपों का त्यौहार।

सबको सूचित कर रहा, आज दीप दिव्यार्थ।
याद दिलाती है सदा, दीवाली पुरुषार्थ।

धरती से आकाश तक, मने ज्योति का पर्व।
दीपक की हर रोशनी, हरे तिमिर का गर्व।

लक्ष्मी माता की रहे, सब पर कृपा अपार।
खुशियों की उपलब्धि ही, दीवाली त्यौहार।

दीवाली का पर्व यह, देता नव उपहार।
अन्धकार को मेंटता, दीपों का त्यौहार।

दीन दुखी में बांटिये, खुशियों का गुलकंद।
दीवाली के पर्व पर, द्विगुणित हो आनंद।

-सत्यनारायण सिंह

२८ अक्तूबर २०१३

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter