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धर्म कर्म पुरुषार्थ का, दीवाली शुभ योग ।
जीवन के उत्कर्ष का, अनुपम नव संयोग ।
पाकर ठाट कुबेर का, मत इतराओ यार।
सीख हमें सिखला रहा, दीपों का त्यौहार।
सबको सूचित कर रहा, आज दीप दिव्यार्थ।
याद दिलाती है सदा, दीवाली पुरुषार्थ।
धरती से आकाश तक, मने ज्योति का पर्व।
दीपक की हर रोशनी, हरे तिमिर का गर्व।
लक्ष्मी माता की रहे, सब पर कृपा अपार।
खुशियों की उपलब्धि ही, दीवाली त्यौहार।
दीवाली का पर्व यह, देता नव उपहार।
अन्धकार को मेंटता, दीपों का त्यौहार।
दीन दुखी में बांटिये, खुशियों का गुलकंद।
दीवाली के पर्व पर, द्विगुणित हो आनंद।
-सत्यनारायण सिंह
२८ अक्तूबर २०१३ |