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दीवाली पर दीप जले शत, कोने में दुबका अँधकार
स्नेह-दीप सब 'सलिल' जलायें, 'मावस पूनम सम उजियार
मिटे मलिनता बढ़े स्वच्छता, रंग-बिरंगा हो संसार
खील-बताशे, खेल-खिलौने, खूब बढ़े हर कारोबार
धूम्र-धुआँ-ध्वनि दूषण कम हो, खुशियाँ खूब बढ़ें चहुँ ओर
जो साधन संपन्न देख लें, दुखी न हों निर्धन-कमजोर
दीवाली हो हर कुटिया में, उजली हो हर घर में भोर
विद्युत् अपव्यय न्यून करें हम, कहीं न हो कोई कमजोर
श्रम कर अर्जित करें लक्ष्मी, श्री गणेश हों तभी प्रसन्न
संस्कार बिन केवल धन हो, जिस घर में वह रहे विपन्न
राष्ट्रलक्ष्मी रोजगार-कृषि-उद्यम, उत्पादन, खाद्यान्न
'सलिल' मने दीवाली अनुपम, संकट कोई न हो आसन्न
देश-हितों का ध्यान रखें सब, तभी मने सच्चा त्यौहार
शांति-व्यवस्था, न्याय-सुशासन, जनहितकारी हो सरकार
घर-घर दीपक करे उजाला, दस दिश में मेटे अंधियार
मति-गणेश हर विघ्न हर सके, गृहलक्ष्मी जीवन उजियार
आचार्य संजीव सलिल
२८ अक्तूबर २०१३ |