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दीपों का त्यौहार

   



 


कोई कुटिया कीजिये, रोशन अब की बार।
हो जायेगा सार्थक, दीपों का त्यौहार।।
दीपों का त्यौहार, उजाला लेकर आये।
जो भी दुखी गरीब, सभी का मन खिल जाये।
कह 'यादव' कविराय, जगालो आत्मा सोई।
खुशियाँ हों चहुँ ओर, दुखी अब रहे न कोई।।

वन से लौटे राम जी, पूरा कर वनवास।
दीपक बाल प्रकट किया, लोगों ने उल्लास।।
लोगों ने उल्लास, तख्त अब रहा न खाली।
हुए खुशी में चूर, मनाई खूब दिवाली।
राम बनें सम्राट, चाहते थे सब मन से।
मना रहे त्यौहार, राम जी लौटे वन से।।

दीवाली को कर गये, दयानंद प्रस्थान।
बाँट गये संसार को, फिर वेदों का ज्ञान।।
फिर वेदों का ज्ञान, सत्य की राह दिखाई।
उन्नत किया समाज, ज्ञान की ज्योति जलाई।
किये सदा शुभकर्म, नींव सद्गुण की डाली।
पाया था निर्वाण, दिवस था वो दीवाली।।

छूटे गुरुजी जेल से, वन से लौटे राम।
दयानंद जी ने दिया, जीवन को विश्राम।।
जीवन को विश्राम, दिवस वो बना दिवाली।
महावीर भगवान, कर गये दुनिया खाली।
कभी हुए साकार, कभी कुछ सपने टूटे।
मना दिवाली पर्व, जेल से गुरुजी छूटे।।

-रघुविन्द्र यादव
२८ अक्तूबर २०१३

   

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