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दीप के उजास पर

   



 

सूर्य राहू ग्रास में
चाँद आप्रवास पर

योजना के
राजपथ भीड़ से भरे रहे
भ्रष्ट किन्तु आचरण राह में खड़े रहे
रोशनी पहुँच न सकी रात कटी
आस पर


गगन धुंध
में बसा धरा के शृंगार सा
फूल पत्र अनमने बाग तीक्ष्ण खार सा
सृष्टि भर की वेदना ओस ओस
घास पर

दिवस
दिग्भ्रमित रहे जागरण हुई निशा
तिमिर काल पुरुष सा छा रहा हर दिशा
उँगलियाँ उठती रहीं दीप के
उजास पर

-परमेश्वर फुंकवाल

२८ अक्तूबर २०१३

   

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