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यह प्रकाश का पर्व, तिमिर का नाश करेगा
ज्योतिर्मय जीवन में नव-विश्वास भरेगा
तुम एक दिया देहरी पर ज्योतित कर देखो
शत शत अँधियारों का
विमल उजास बनेगा
सूने घर आँगन में सिमटी यादों को
सपनों के नील गगन में विचरण करने दो
जब तोड़ सको मोती से सभी नखत नभ के
अपने आँचल में उन्हें समर्पित होने दो
यह आँचल का दीप
प्रबल दिनमान बनेगा
पर जिनके घर में अँधियारा ठहर गया
उस अंध-तिमिर-जीवन में सूरज ढलने दो
हैं असंख्य दीपों की झिलमिल तारावलियाँ
बस एक दिया उनके आँगन में जलने दो
वह एक अकेला दीप
खुशी का मान बनेगा
है भूख, गरीबी, हिंसा के अनगिन नरकासुर
तुम शक्ति स्वरुप बनो, अनय का नाश करो
जन मन की धूमिल होती आशाओं में
प्रज्वलित दिवाकर सा जीवन का त्रास हरो
यह अमर दीप मन के
सारे संत्रास हरेगा
--पद्मा मिश्रा
२८ अक्तूबर २०१३ |