अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

यह प्रकाश का पर्व

   



 


यह प्रकाश का पर्व, तिमिर का नाश करेगा
ज्योतिर्मय जीवन में नव-विश्वास भरेगा
तुम एक दिया देहरी पर ज्योतित कर देखो
शत शत अँधियारों का
विमल उजास बनेगा

सूने घर आँगन में सिमटी यादों को
सपनों के नील गगन में विचरण करने दो
जब तोड़ सको मोती से सभी नखत नभ के
अपने आँचल में उन्हें समर्पित होने दो
यह आँचल का दीप
प्रबल दिनमान बनेगा

पर जिनके घर में अँधियारा ठहर गया
उस अंध-तिमिर-जीवन में सूरज ढलने दो
हैं असंख्य दीपों की झिलमिल तारावलियाँ
बस एक दिया उनके आँगन में जलने दो
वह एक अकेला दीप
खुशी का मान बनेगा

है भूख, गरीबी, हिंसा के अनगिन नरकासुर
तुम शक्ति स्वरुप बनो, अनय का नाश करो
जन मन की धूमिल होती आशाओं में
प्रज्वलित दिवाकर सा जीवन का त्रास हरो
यह अमर दीप मन के
सारे संत्रास हरेगा

--पद्मा मिश्रा
२८ अक्तूबर २०१३

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter