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हर साल मेरी रूह को,
कर डालती है बावली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥
इक वजह है ये मुस्कुराने की।
फलक से,
आँख उट्ठा कर मिलाने की।
घरों को,
रोशनी से जगमगाने की।
गले मिलने मिलाने की।
वो हो मोहन,
कि मेथ्यू,
या कि हो ग़ुरबत अली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥
हृदय-मिरदंग बजती है,
तिनक धिन धिन।
छनकती है ख़ुशी-पायल,
छनक छन छन।
गली में फूटते हैं बम-पटाखे भी,
धना धन धन।
अजब सैलाब उमड़ता है घरों से,
हो मगन, बन ठन।
लगे है स्वर्ग के जैसी,
शहर की हर गली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥
--नवीन चतुर्वेदी
२८ अक्तूबर २०१३ |