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गलियाँ भी
सुनसान नज़र
आती हैं आज उजाले में
दीपक एक जलाकर रखिये
अपने
मन के आले में
रखिये दीपक
इन राहों पर,
भीड़ भरे चौराहों पर
शासन, सत्ता की गलियाँ,
दुविधा, मन के दो राहों पर
निशदिन जैसे जलते दीपक
मंदिर और शिवाले में
दीपक एक जलाकर रखिये
अपने मन के आले में
कैसा कातिक,
कैसा अगहन
हाथ है खाली, खाली बर्तन
गोबर कुछ उखड़ा-उखड़ा सा
है, धनिया का आहत मन
होरी को साजिश
मिलती है प्रतिदिन
आज निवाले में
दीपक एक जलाकर रखिये
अपने मन के आले में
-कृष्ण कुमार किशन
२८ अक्तूबर २०१३ |