तम दूर करो हिय से अपने अरु ज्ञान प्रकाश हिये भर लो
प्रण लो मन में यह आज सखे सदभाव दिया कर में कर लो
छल दंभ कि नीतिहि छोड़ सखे तुम प्रेम पुनीत हिये धर लो
जल जाय सभी घर प्रेम दिया निजता सबकी प्रभु जी हर लो
घोर अमावस की ये निशा बन पूनम रात जहाँ चमके है
दीप जले घर बाहर भी अरु द्वार यहाँ सबके दमके है
रीति कुरीति करो न सखे यह दीप पुकार कहे तुमके है
मै मदिरा अरु लोलुपता धन सत्य सखे विष जी समके है
-चिदानंद शुक्ल
२८ अक्तूबर २०१३ |