तार यों झनका गईं मतवारियाँ
रामधुन गाने लगीं उजियारियाँ !
तिमिर जीते ज्योति के संकल्प ने
कौन से युग में न थीं दुश्वारियाँ !
मौन हैं पर भ्रमरगीतों- सी लगें
रोशनी की रात में फुलवारियाँ !
दियों के अधरों ने ऐसे छू लिया
फूलझड़ियों-सी हँसीं चिंगारियाँ !
प्रश्न भटके फिर रहे उत्तर बिना
अश्वमेधी व्यर्थ सब तैयारियाँ !
देख लो दशमुख मिटा देंगी तुम्हें
यदि विभीषण बन गईं लाचारियाँ !
--अश्विनी कुमार विष्णु
२८ अक्तूबर २०१३ |