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चलो फिर मनाएँ दिवाली

   



 

देख दीपमालिका
सो गया चाँद
हँस रही शाम,
ओढ़े चुनरिया
लड़ियों वाली,
गली गलियारों से लिपटी
खिलखिला रही दिया बाती
कहे, चलो फिर मनाएँ दिवाली।

पर्व है दिव्यार्थ का
राम के पुरुषार्थ का
अँधियारे से उजार का
आस्था का आलोक ओढ़े
देहरी और चोबारों में
रात हुई बावरी तारों के संग
कहे, चलो फिर मनाएँ दिवाली।

चौदह बरस बाद लौटे है
सियाराम रघुराई
बिखरी बहार है, खुशी का त्यौहार है
फुलझड़ियाँ गूँथ रही रिश्ते सरस
प्रेम, सोहार्द से भरी मतवाली
सजाये प्रेम की थाली
इंद्र्धनुषी रोशनी के संग
स्नेह-साधना के दीप
अंतर्मन में जलाएँ
चलो, मनायें दिवाली

रोज मनाएँ, ऐसी ही दिवाली
शंखनाद दिवाली

- अनिता कपूर
२८ अक्तूबर २०१३

   

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