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दीप धरो
वर्ष २०१२ का दीपावली संकलन

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रोशनी के फूल



 

हर्ष के पाहुन हमारे द्वार खटकाने लगे हैं
रोशनी के फूल देखो,खूब मुस्काने लगे हैं

छू गई आकर धरा को
व्योम की लो, स्वर्ण-रेखा
हो गई निशि स्वयं मोहित
इंद्रधनुषी चित्रलेखा

चंचला, करने लगी हैं, रश्मियाँ, अठखेलियाँ
अब बहुत मायूस अँधियारे नज़र आने लगे हैं

सजे रंगोली, बँधे अब
द्वार वन्दनवार, घर-घर
जगमगाएँ देहरी पर
स्वागतम के दीप तत्पर

जिन घरों में हों अँधेरे, चलो ज्योतित करें उनको
स्याह रातों के समंदर सिमटकर जाने लगे हैं

एक कोना, एक आँचल
रह न जाए कहीं खाली
दीप्त हों चेहरे सभी के
मने तब अनुपम दिवाली

हो यही संकल्प आओ बाँट दें सबको उजाले
एक मावस हँसी जब तो सूर्य शरमाने लगे हैं

--प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१२ नवंबर २०१२

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