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कुछ
पुराने हो चुके
मेरे कपड़ोँ से
एक बुशर्ट-पेंट
'सुगना' के पति को
पहनाई.....
अरे!!!!
इसने तो आज ही दिवाली मनाई ।
फ्रिज में
संभाल रखी
मिठाई के
डिब्बों से
थोड़ी मिठाई
'सुगना'के बेटे को
खिलाईं.....
अरे!!!!!
इसने भी आज ही दिवाली मनाई ।
बिटिया
के खिलौनों
के ढ़ेर से
एक नन्हीं गुड़िया
'सुगना' की बेटी को
भिजवाई.....
अरे!!!!!!
इसने तो बार-बार दिवाली मनाई ।
और
'सुगना'
घर काम करती है,
बचा हुआ खाती है,
साड़ी, बिंदिया, जूती, कंगन
जूना पाती है,
'सुगना' ने परिवार की रोजी-रोटी
जुटाई.......
अरे!!!!!
इसने तो रोज ही रोज दिवाली मनाई ।
( रौशनी/चकाचौंध से ही नहीं...........
देने/मिलने वाली खुशियों से भी
सन्दर्भित है दिवाली.....)
--संजय 'कांति' सेठ
१२ नवंबर २०१२ |