अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीप धरो
वर्ष २०१२ का दीपावली संकलन

परी है रोशनी



 

गगन से उतरी परी है रोशनी
आस्था पाकर हरी है रोशनी

रूप जिसका कल्पनाओं से परे
ह्रदय की कादंबरी है रोशनी

खोज पाओ तो स्वयं में खोज लो
प्यार की बारादरी है रोशनी

दीप त्यागी है तपस्वी है
मगर उसकी सहचरी है रोशनी

धरा से आकाश को जो जोड़ती
सात रंगों की ज़री है रोशनी

तम दिशा भ्रम ही सदा देता रहा
रास्तों की फुलझरी है रोशनी

खिड़कियों से मुँह चिढ़ाती है हमें
एक अल्हड़ छोकरी है रोशनी

-सजीवन मयंक
१२ नवंबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter