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महँगाई से क्यों डरें, दीवाली है आज
आओ खुद जल कर फटें, बिना किये आवाज़
मावस ने जब कर दिये, चाँद-सितारे ढेर
ले आये दीपावली, मनु के पुत्र दिलेर
दसों दिशा जगमग हुईं, धरती-गगन ललाम
पहुँचे थे जिस क्षण अवध, लक्ष्मण-सीता-राम
बम्ब पटाखे फूटते, कोलाहल के संग
मनमोहक लगते मगर, फुलझड़ियों के रंग
अत्युत्तम, अनुपम, अमित, अद्भुत, अपरम्पार
सुंदर, सरस, सुहावना, दीपों का त्यौहार
चूनर साड़ी ओढ़ना, बिंदिया, कंगन संग
गोरी तुझसे फूटते फुलझड़ियों से रंग
मातु, पिता, भाई, बहन, सजनी, बच्चे, यार
जब-जब ये सब साथ हों, तब-तब है त्यौहार
दीवाली का है यही, दुनिया को सन्देश
अपनों को भूलो नहीं, देश रहो कि विदेश
सजा थाल पूजा करें, साथ रहे परिवार
हर घर में ऐसे मने, दीवाली त्यौहार
रमा चरण पर राखिये, श्रद्धा सह निज माथ
दीपावली मनाइए, दीप अवलि के साथ
--नवीन चतुर्वेदी
१२ नवंबर २०१२ |