कहाँ है — ?
कहाँ है — ?
रौशनी का वह छलकता पानी
बुहार देती जिसे बहाकर मैं
अपने आँगन का
हर एक दर और ज़मीं
धो देती कोना-कोना इसका |
सजा देती
एक -एक आला और झरोखा
जलते दियों की श्रृखलाएँ रखकर।
खड़ी हो जाती मैं
इस साफ़ सुथरे आँगन के बीच
उठाए हुए
अचंभित सी नज़रें
और तब — !
घट के रह जाता
रिक्त आँखों के
स्तम्भित शून्य में
एक निरा,
साफ़ और स्पष्ट
नीला आसमान।
मीना चोपड़ा
१२ नवंबर २०१२ |