एक दीप करता उजियारा
मन प्रागण हो या
जग
सारा
आलोकित हो जाता
दीप ज्ञान का जल जाए तो
सुबह ज्ञान की होती
दीप प्रेम का जल जाए तो
प्रीत हर जगह होती
दीप शांति का अगर जले तो
जग शीतल हो जाए
दीप दीप से जगमग हो
वसुधा निर्मल हो जाए !
दीप पुरुष है
दीप है प्रकृति
मिटटी से यह देह है रची
ज्योति दीप की
स्नेह में बसी
दीप मनु वर्तिका इरावती !!
दीप है जीवन
दीप पर्व है
दीप स्वर्ग की है स्वीकृति
दीप तूफानो में जल कर के
दे जाता कुछ सीख सखी
अन्धकार में सतत कर्मरत
आस जगाए रखना
हर चौखट चौराहों पर
उजड़ गए जो कभी हवा से
उन सूने गलियारों पर
एक दीप जलाये रखना !
दीप कर्म का अगर जले तो
बुझे न कोई आस
नेह ज्योति हो
बुद्ध सरीखी
हर घर मे दीपोत्सव हो
यह सोच बनाए रखना
अपने अपने
जीवन में
एक दीप जलाये रखना
--मंजुल भटनागर
१२ नवंबर २०१२ |