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जब दीपक जलकर निखर
गया
स्वर्णिम आभा सा बिखर गया
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तम किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ
क्या जाने छिपकर किधर गया
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क्षण भर में तम को हरा दिया
इक दीपक दिल में उतर गया
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झिलमिल तारों की लड़ी जड़ी
घर, आँगन, कोना सँवर गया
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अब तम धरती पर पले नहीं
दीपोत्सव, कहकर गुजर गया
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--कृष्णकुमार तिवारी
किशन
१२ नवंबर २०१२ |