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आ गई प्रिय,
फिर दीवाली, पर्व पावन है।
एक दीपक तुम जलाओ, इक जलाऊँ मैं।
घोर तम की
यामिनी, दुल्हन बनी इतरा रही।
अवनि से अंबर तलक, ज्योतिरमई मन भा रही।
रोशनी की रीत यह, युग युग से चलती आ रही,
दीप में प्रिय, घृत भरो,
बाती सजाऊँ मैं।
सज रही
आँगन रंगोली, द्वार लड़ियाँ हार हैं।
नवल वस्त्रों में सभी, छोटे बड़े तैयार हैं।
सगुन की इस रात में, हर साज की मनुहार है,
प्रिय, सुरों में साथ दो, शुभ
गीत गाऊँ मैं।
शोर से
गुंजित दिशाएँ, पटाखों का दौर है,
जोश जन जन मन पे छाया, पर्व का पुरजोर है।
यह बुराई पर विजय का, जश्न चारों ओर है,
फुलझड़ी तुम थाम लो, प्रिय,
लौ दिखाऊँ मैं।
थाल हैं
पकवान के, पूजा की शुभ थाली सजी।
कमल पर आसीन है, कर दीप धारी लक्ष्मी।
आ गई मंगल घड़ी, करबद्ध हैं परिजन सभी,
प्रिय, करो तुम आरती,
माँ को मनाऊँ मैं।
-कल्पना रामानी
१२ नवंबर २०१२ |