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दीप-अवलियों से
यह अग-जग,
ज्योतिर्मय कर दो।
मटमैली संझा
अम्बर का धूसर रंग हुआ,
सूरज बुझा, कालिमा पसरी,
आँगन धुआँ-धुआँ।
जगे आज
आलोक सृष्टि में
स्वस्ति राशि भर दो
कहीं तिमिर अब
और न कर ले बघनख ही पैने,
सुआ-दिवस के
टूट न जाएँ सपनीले डैने,
ज्योतिपुंज से
दिग-दिगन्त को
जीवन से भर दो।
दुर्गा, वीणापाणि, लक्ष्मी
और महाकाली,
दिव्यान्तरण, ज्योति का क्षण
यह जगमग दीवाली,
आज अमा के शीष
ज्योति का
राजमुकुट धर दो।।
--दिवाकर वर्मा
१२ नवंबर २०१२ |