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घनघोर तिमिर अमावस का
हुआ नेह दीप से ज्योतिर्मय
स्वर्ण उल्लू वाहन लक्ष्मी का
चाँदी के मूस पर गणपति सजे
परदेस में बसे भारतियों के घर
दीपावली का दिखावा जमकर
मुस्काते हैं अन्तर्मन व्याकुल
स्वदेस की दिवाली को मन आकुल
चाँदी के थाल लडडुओं के सजे
खानेवाला, लेनेवाला कोई नहीं
बहुत याद आते मंदिर के पंडितजी
चौकीदार, नौकर,बाई और भिखारी
वो पटाखों, फुलझड़ियों की रात
आँगन में अनार, चकरियों की गूँज
ताश की हार-जीत बैटक के बीच
भरे-पूरे परिवार में आरती की गूँज|
मंगल-करण गणपति देना वरदान
अपनी माटी अपना देश न छूटे
त्यौहारों में भाई-बन्धु हों साथ
दीप से दीप जलें,पूरी हो मन की आस!!
वीणा विज ‘उदित’
२४ अक्तूबर २०११ |